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क्या यही प्यार है? एक प्रेमी दो प्रेमिका….

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यह दूसरा मामला है जब दो प्रेमिकाऐं एक प्रेमी के लिए भिड़ गई। क्षेत्रीय जनता बाहर से आकर पढ़ रहे छात्रों को ही दोषी मान रही है। इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो बेहद घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। रंगरेलिया मनाने, प्रेमी प्रेमिकाओं के पकड़े जाने की बातें यहां आम हो चुकी हैं।
बुधवार को ठाकुरद्वारा के काशीपुर रोड पर शार्ट हैंड सेन्टर पर पढ़ने वाली दो छात्राऐं आपस में भिड़ गईं। हाथापाई के साथ जमकर गालीगलौज हुई। दोनों एक दूसरे पर उसके प्रेमी से सम्बंध बनाने का आरोप लगाकर एक घंटे तक भिड़ती रहीं। बताते हैं कि एक युवक दोनों छात्राओं से प्रेम का ढोंग कर रहा था। इस बात की जानकारी होने पर दोनों छात्राऐं आपस में भिड़ गईं।

इस तरह का दूसरा मामला, गंभीरता से लेना जरूरीः
यह पहला मामला नहीं है। दो माह पहले भी कुछ ऐसा ही दृश्य मेन मार्केट में देखने को मिला था। दो छात्राऐं एक प्रेमी के लिए भिड़ गईं थी। तब भी घंटा भर चली नोटंकी में हाथापाई और गालीगलौज हुआ था।
इसे गंभीरता से लेना बेहद आवश्यक हो गया है। प्रशासन कुछ जरूरी कदम उठाकर इस पर लगाम कस सकता है।

शार्ट हैंड सेन्टर पर सिखाया जाता है प्यार का पाठः
नगर में चल रहे शार्ट हैंड सेन्टर इन सब बातों को बढ़ावा दे रहे हैं। दर्जनों सेंटर बगैर मान्यता के चल रहे हैं। लड़के और लड़कियों की क्लासें एक साथ चलायी जाती हैं। जिससे तमाम छात्र छात्राऐं पढ़ाई छोड़ प्यार की पींगे बढ़ाने लगते हैं। बीते समय में दर्जनों प्रेमी युगल फरार हुए जिनमें सबसे ज्यादा शार्ट हैंड सेन्टर पर पढ़ने वाले छात्र छात्राऐं थे।
सेन्टर संचालक मात्र पैसे की हवस में इन सबकों बढ़ावा दे रहे हैं। प्रत्येक छात्र छात्रा से 400 रूपये से 500 रूपये प्रति माह लिए जाते हैं। जिसमें संचालक चाहें तो अलग अलग क्लास लगा सकते हैं। मगर उन्हें इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सेन्टरों में नहीं है कोई आधुनिक सुविधाः
छोटे से छोटे सेन्टर की भी बात करें तो एक क्लास में 200 से 250 विद्यार्थियों को ठूस दिया जाता है। हर सेन्टर पर कम से कम 3 क्लासेज चलती हैं। मतलब कुल 700-800 छात्र छात्राऐं। 800 छात्रों से मिलने वाला पैसा 400 रूपये प्रति छात्र के हिसाब से भी 320000 तीन लाख बीस हजार रूपये प्रति माह मिलता है। एडमिशन फीस के रूप में तो 500 से 1400 रूपये लिए ही जाते है।
अब सुविधाओं पर नजर डालें तो लगभग हर सेंटर का यही हाल है। टीन शेड में पढ़ाई चल रही है। पंखों की कोई सुविधा नहीं है। लड़के लड़कियों को एक ही कमरे में मुर्गी के बच्चों की तरह ठूस दिया जाता है। कुल मिलाकर सुविधा के मामले में लगभग सभी सेन्टर शून्य हैं।

कहां जाता है इतना पैसा?
सेन्टर संचालक लगभग तीन लाख रूपये से अधिक प्रतिमाह कमाते हैं। कहां करते हैं खर्च? मान्यता नहीं है तो कोई टैक्स नहीं भरते। पंखे नहीं हैं तो बिजली का कोई बिल नहीं। शिक्षकों को प्रतिमाह 1500 से 2000 रूपये वेतन दिया जाता है। सिर्फ तीन ही शिक्षक पढ़ातें हैं, मतलब ज्यादा से ज्यादा 6000 रूपये प्रतिमाह खर्च और लाखों की कमाई। प्रशासन इस ओर आखें मूंदे हुए है। उपजिलाधिकारी द्वारा रजिस्टेशन कराने का आदेश हुआ था जिसे सेन्टर संचालकों ने हवा में उड़ा दिया।

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